घुस्सा भी तेरा, मुझे अच्छा लगता है
घुस्सा भी तेरा, मुझे अच्छा लगता है
जिसमे छिपा है प्यार, मुझे भाता है
आदि बनगया हूँ में तुझसे कसमसे
तेरे बगैर जीना मुझे दुस्वार लगता है
ग़ुस्से में सुंदरता तेरी और खुल जाती है
प्यार करनेको जी और तरसता रहता है
बंद हातो में जखड़कर अमृत पिता हूँ
दर्द से फिर बेपरवा हो जाता हूँ
बुराई जो तू कहती है अच्छी है
कमर कसकर मुझसे लड़ती रहती है
तू समझ नहीं पाती मुझे क्यों भाति है
मन से कोमल , और प्यार की मूरत है
मनमें दुखी देखकर गम भी होता है
पर क्या कर ये दीवानगी रूठती है
नींद में तू लता में वृक्ष बनता हूँ
चिड़िया बनकर डसती रहती हो
Beautiful image. The poem is very nice.
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