पूनम का चाँद
पूनम का चाँद
कुसुमा दपि मुख मंडल तेरा
जैसे मोगरा मन भाये
नयन चकोर देख रही किसीको
हमसे अब क्यों शरमाये
पंखड़ी पुष्प की होगयी पुष्ट
गुल भी वहा विराज मान हुवे
हसी को छुपाने यह गाल के गड्ढे
हमसे काहे को इतराये
पूनम का चाँद देर से निकला
क्यों बदली में छुपना चाहे
कितना छुपाओ छुप ना सकेगी
मुस्कान दुल्हन सी शरमाये
ओठो पर ये मिठास मुस्कान
गालो में चाहे छुप जाए
घुंगरू जैसी बरस पड़ेगी
जब मन चोरी पकड़ी जाए
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