परि का भ्रमण


मुझसे खपा होके दफा कर दिया
ऐसा गुनाह मैंने क्या किया
चहरे प्यार दिलजली आभा
ताकता रहता किनारे पे मैं खड़ा

सपने सारे तुमसे भरे थे 
उनका भी कोई कसूर ना था
निर्मल तेरे मन पर भुला 
ठहरा मैं एक बावरा

मोहमयी तेरी मुख की शोभा
दिन रात मुझको सताती रही
मृदुलतम लाघवी वाणी पर
मैं सदा ही भूलता रहा

 नयनो में  कैसा प्यार का झील
मुझको डुबाके चला आ रहा
ऐसे में तुमने मुझे झिटकारा
मैं कही का नारहा बना बावरा

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 परि का भ्रमण

वहा सूरज सुन्दर था, तू उधर की हो गयी
तुज बिन यहाँ पर प्यार की भर्ती आ गयी
अजी यहा हुस्न की कदर , इश्क की नुमाइज हैं
भारतीय सांस्कृति का यहाँ अलग ही मिजाज हैं

तेरी आखियो का नूर वहा किसीको क्या पता
उसमे जो निर्मलता है किसीको क्या पता
सूरत में तेरे एक बचपन किसी को क्या पता
गूंजती मेरे कानो में तू, किसी को क्या पता

ओठ तेरे गुलाब पंखड़ी  लगता तितली बनजाऊ
मकरंद तेरा होगा मधुर  लगता  मधुमख्खी बनजाउ
पंखड़िमे होगा  आंचल लगता  भ्रमर बनजाऊ
क्या चोर छचोंर जैसा , हमिंग बर्ड बनजाऊ

कुछ ना हुवा तो , चातक जैसा ताकता रहूंगा
बादल तारे देखते रहेंगे मैं सिर्फ चाँद ही देखूंगा
मृगजल में तेरी प्रतिमा , मुझपर ही लुभेगी
मैं दीवाना मगन मगन सपने में सोता रहूंगा

कालिदास

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