योग




ना करो योग लौट आ जाओ 
सिर्फ मन में ख़ुशी के फूल ले आओ 
          तन के लिए होमिओ की पदवी है 
          मन तो तुम्हारा ऐसे ही निपाक है 
आत्मज्ञान तो मोक्ष नहीं है 
सात्विक कर्म भी मोक्ष नहीं है 
          लेना या देना सब रखो हिसाब मे
          ईशरीय मन से करो कर्म सारे 
यही है मोक्ष जांच लो कही भी 
तबियत के खातिर योग है सही भी 
           प्रकृति का आनंद समझ ते ओ नहीं 
           योग करके स्वाद जो , ओ है सही

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