सुनसान राहे





ऐसे अकेले तुम ना सोचा करो 
बताओ मुझे तुम ना शरमा करो 
फ़िक्र कौनसी ना छिपाओ मुझसे 
कहदो साड़ी मन हलका करो 

चुपचाप ये है मन की सुनसान राहे 
हलचल पलको की ऐसी क्यों छुपाये 
मेरे मन की बुलबुल क्यों है गुमशुम 
नज़रे तो फेरलो ज़रा देखो हमें तुम 

अब ये दुनिया मुझे लगती सुनी सुनी 
बेजान लगती ये नदिया और पहाड़ी  
ये निर्झर ये बनराइ कहा छुप गयी 
अकेला हूँ मै अब पर सब से जुदाई 

तू उदास रहेगी तो उजड़ जायेगी दुनिया 
ना देखेगी मुझको तो सूरज ना उगेगा 
ना बोलेगी मुझसे तो फैट जाएगा आसमा 
प्यार ना रहा तो हवा बन जाऊंगा 





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