प्यारी कली
एक सुंदरसी कली थी प्यारी
तितलिया मंडराती दिन भर सारी
झूमती मस्त खुशीमे अकेली
कभी बलखाती कभी मुस्काती
रंग बिरंगी पंखडिया कोमल
भवरेने एक दिन कर दिया विकल
रोइ रोइ फिर झूट मुस्कराई
भवरे को बहोत समझाई
उदास बन गयी कली बेचारी
भवरे ने उसकी प्रीत झिट कारी
कली दिन रात रोती रहती
ज़िंगर ने एक दिंन आसु पुछि
कली खिल उठी मस्त हस पड़ी
झिंगर के साथ प्यार कर बैठी
खूब लहराई नाच दिखाई
झिंगर को सब ये रास न आई
कली न मानी फिर रोने लगी
रूठ कर बोली मै न मानु
तेरे भ्रम को मै न जानू
अब तो तुही है मेरा मजनू
गीत गाना मेरा काम है
तारीफ करना मेरा धरम है
घुंगट में तेरा छिपा है चेहरा
मै क्या गाऊ लगा है पेहेरा
झिंगर के हर गीत पर अब
उदास रहती तितलिया सब
झिंगर ने मन से प्रीत जतायी
तारीफ़ किसीकी मन में न भायी
प्रीत भई फिर भी न मानी
झिंगर को जान न पायी
प्रीत उदासी से फिर छा गयी
दोनों प्रेमी प्रीत हार गयी
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