जोगी




This poem is purely imagination & nothing deal with even image or anyone
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 जोगी
विरह का झील है नयनोमे तेरे 
उदासी भर दी तूने मेरे मनमे 
हम चले जोगी नयनोके किनारे 
गीत विरह के  गाते तुम्हारे 

किस जनम की कौन तुम हमारी ?
मुझे ना याद है, सजनी प्यारी 
सामने तेरी तस्बिर जो आयी 
लगता सारी दुनिया  मिलगयी 

ताकता रहता नयनोमे तेरे 
नयनोसे नीर ना रुके हमारे 
इन्तजार किसका कैसी यादे 
भूल रहे है कुछ याद न आये

देखले मेरी तसबीर सजनी 
याद आती क्या कुछ कहानी 
मै तो दीवाना उलझे दिलमे 
लेकर  तेरी तसबीर मनमे

किस जनम में फिर मिलोगी 
तब अपनी मुलाक़ात होगी 
करीब रहना भूल न जाना 
साथ साथ है धरती पर आना 



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