अप्सरा
अप्सरा
हसी तो गालो की गुलाम बनी है
बालोकी लटे मुखड़े को सजा रही है
अदा ओ की यहाँ तुम्हे तो फ़िक्र नहीं
कोई जिगर से जाए हमेशा की सजा है
अखियो का अल्लड पन गमो में उतार लिया
उदासी की सारे समंदर पी लिया
फुलसी नासिका और होटो के किनारे
मन ने हमारे किनारे मंदिर बना लीया
चाँद भी शर्माए उसका गम नहीं
तारे भी टिमटिमाये वैसे कम नहीं
नजरे लगी है अमृत की खोज में
यहाँ तो पूरा चेहरा ही अमृत बना है
दुपट्टा गले लगालिया हमें तो फ़ासी है
दिल खोल के रख दिया हमें तो बेहोशी है
प्यार की चाह भरी है मुखड़े पर
हमारा तो ताक ने से ही मन भर जाता है
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