नजर
नजर
नजर
नजरें तुम्हारी कातिलाना हमें ग़ाफ़िल बना दिया।
अदाओ की क्या नजाकत हमें ग़ालिब बना दिया।
हुस्नको शरमाये फूल भी हमें खुशबू बना दिया।
दर्देदिल ज़ुकता नहीं हाय काबिल बना दिया।
तेरे सिवा नजर आता नहीं हमें दीवाना बना दिया।
हे हुस्न के शागिर्द हमें ये कैसा नशा दिया।
शर्म हया बेवफा हुयी तेरी मुस्कान की गलियो में।
अनजान जान बेखबर हमें बेजान कर दिया।
चाहे नज़ारे नीलाम कर दो हुस्न के बेहेकानेपे।
मुस्कान की तिर्की ज़लक ने दिलो महल तबा कर दिया।
मुसाफिर
चुनरी
शागिर्द , शाहिरेनूर हमें मालुम है ,
लब्ज खफा है हम पर ज़रा राजी करा देना।
मुसाफिर है हम ज़रा पेहेचान करा देना.
शायरी की चुनरी जो लहराई नजर आया दिल का आलम।
उभरी भरी दिलकी धड़कने देख थम गया आसमा , बेहोश हुए हम।
कस्म कस दिल की ज़लकती मुखड़ेपर बया करता दिल का आशियाना।
लब्ज की क्या जरुरत काफी है नजर का नजराना।
मुसाफिर
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