मजबूर





मजबूर

नाराज क्यों होते हो दिलबर इतनी  बेसबरी ठीक नहीं
मालुम है हालात हमें मिलाने के काबिल नहीं
तेरी आँखो की  गुजारिश हमें मजबूर कराती है तनहा 
जैसे पिंजरे में पंछी कैदी बना हो 

तेरी नजरोकी तनहाई हमें रुलाती है दिल में 
तेरी हर लब्ज  मैंने लपेटलिया है चद्दर की तरह 
तेरी हर आसु के बून्द का मै कर्जदार हूँ 
आजाओ सिनेसे लगजाओ दर्द  कर दो मेरे हवाले

उमंगें इसलिए पैदा हुई है जगाने के लिए 
चलो एक बार फिरसे उठा लेते है पल को बाहोमे 
हसना भी है हर पल पलकें झिलमिला के 
ज़रा बतादो दुनिया को फूल बनगये तो महक फैलती है 

हम तो भवरे है ढूंढ लेंगे कही भी 
लेकिन नाराज ना होना दूसरे फूल देखेंगे भी नहीं 
पलकें हटा के मुखड़ा खुला रखना 
बंद होने वाली पलकें हो तो ज़रा संभाल के कस लेना  

    साथ में पराग लाये है मधुके बदले 
    एलर्जी के कारण मधुसे बेहोश हो जाते है 
    हो सकता है पंखड़ियोंमे रात गुजारनी पड़े 
    मधुसे पर भी नाकाम होते है जिंदगी गुजारनी पड़े

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